अगर आवाज़ उठाने को, सवाल पूछने को सही समझते हो
अगर महज़ एक मतदाता नहीं खुद को नागरिक समझते हो
तो आवाज़ उठाया करो और सवाल जरूर पूछा करो।
जरूरी नहीं कि तुम धरने पर बैठो
जरूरी नहीं कि तुम जुलूसों में जाओ
जरूरी नहीं कि तुम बड़ी बग़ावत करो
तुम बस अपने पढ़े लिखे को जाया न करो
हर बात को तर्क और विवेक से तोला करो
हर रोज़ छोटी-छोटी मिथ्याओं से लड़ा करो
ख़बरों से परे की ख़बरों की ख़बर रखा करो
जो दिखाया जा रहा है, आड़ में उसकी
क्या छुपाया जा रहा है ये सोचा करो
जब सामान्य से परे सोचोगे
तो कई सवाल कौंधने लगेंगे
सवाल करोगे कि
कैसे अस्सी फीसद खतरे में है ?
और किससे है खतरा इनको ?
भुखमरी में कौन से पायदान पे है हिन्दोस्तान ?
खुशहाल देशों की सूची मैं कहाँ है हम ?
क्यों महिलाएं भारत में सबसे असुरक्षित हैं ?
मंदिर – मस्जिद बन जाने से
क्या रोटी मिलेगी सबको ?
हिन्दू – मुस्लिम करने से
क्या पा जायेंगे हम?
जैसे भाप आईने में एक परत बना कर
आपका प्रतिबिम्ब धुंधला कर देता है
और साफ़ देखने के लिए
आपको वो परत हटानी होती है
ऐसे ही सच्चाई जानने के लिए
कई परतें उधेड़नी पड़ती हैं
ये तो तय है जो दिखाया जा रहा है
सच उसके परे है, कुछ और
इसलिए सवाल करो
और सबसे पहले खुद से।
जब सामान्य से परे देखोगे
तब दिखेंगे वो सारे सवाल
जिनसे तुम्हारा सरोकार है
और जिन्हे तुमसे छुपाया जा रहा है
खोजो उन सवालों को और
मांगो उनके जवाब
अगर सवाल पूछना और जवाब मांगना छोड़ दोगे
तो समझो इंसान होना छोड़ रहे हो