लिहाफ़

लिहाफ़

यह किताब क्यों ?

इस्मत आपा – जिस नाम से उन्हें लोग प्यार से बुलाते थे उनका  सिर्फ नाम ही सुना था। मंटो फिल्म के जरिये उन्हें थोड़ा जाना और उनकी शख्सियत का अंदाजा हुआ तो  उनको पढ़ने की इच्छा हुई। यह कहानी संग्रह एक अच्छा माध्यम लगा उनको पढ़ने का तो सोचा इस किताब से ही शुरू किया जाए। 

किताब 

लिहाफ़  – इस्मत चुगताई की सत्रह लघु कहानियों का संग्रह है। इन्ही कहानियों में एक कहानी है लिहाफ़ जो बाद में चलकर बहुत मशहूर हुई, लेकिन उस समय इस कहानी को लेकर उनपर लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा चला था जो बाद में खारिज़ हो गया था। आरोप था अश्लीलता का क्यूंकि कहानी समलैंगिकता के विषय पर थी। 

उनकी हरेक कहानी में नारी प्रमुख किरदार होती हैं और जो कि माध्यम वर्गीय मुस्लिम पृष्ठ्भूमि से आती हैं।  इनमे अधिकतर किरदार रूढ़िवादी पितृसत्ता व्यवस्था के अंदर जवान होती लड़कियों की मनोदशा को इस्मत चुगताई ने बखूबी दर्शया है। हरेक कहानी अपने समय के सामाजिक परिवेश को दर्शाती है।  कोई भी कहानी और अधिक प्रभावशाली और सुन्दर हो जाती है अगर कहानीकार शब्दों के तानो -बानो  को सही से बुने।  कहानी पढ़ते वक़्त आपको इस बात का भी अनुभव होगा की कैसे किसी भाव को बड़ी ही सुंदरता से कहा गया है। एक और बात जो कहानियों में देखने को मिलती है वो ये कि  लगता है हर किरदार को इस्मत आपा बहुत अच्छे से जानती हो, जैसे हर रोज़ उनसे बात करती हों  और उनकी हर छोटी-बड़ी , अच्छी-बुरी सब बातों को जानती हों।  अगर आप ध्यान से कहानी पड़ेंगे तो आपको  कहानी का कर पात्र नज़र आने लगेगा, उसका घर , घर को जाती सड़क , उसका कमरा , कमरे में रखा सामान आपकी आँखों के सामने आ जाएगा मानो आप फ़िल्म देख रहे हों। 

कहानिया हिंदुस्तानी में कही गयी है, इसलिए उर्दू शब्द काफी मिलेंगे जिनका हिंदी अनुवाद फुटनोट्स में दिया हुआ है। अगर आप हिंदी किताबें नहीं पढ़ते हैं तो शायद आपको मुश्किल हो , लेकिन जो हिंदी या हिंदुस्तानी (हिंदी-उर्दू) देवनागरी में पढ़ते हैं उन्हें ये कहानियां खूब पसंद आएँगी।  कहानियां उस दौर का आइना भी है जब ये लिखी गयी थीं , इनसे आपको चालीस और उसके बाद के दशकों के बारे में जानने को भी मिलता है और उससे भी ख़ास बात है इस किताब के द्वारा आपका एक बेहतरीन लेखिका से भी परिचय होता है।  

 लेखक परिचय 

इस्मत ने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़े की दबी-कुचली-सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। इस्मत चुग़ताई पर उनकी मशहूर कहानी लिहाफ़ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में मुक़दमा चला, लेकिन ख़ारिज हो गया। गेन्दा उनकी पहली कहानी थी जो 1949 में उर्दू साहित्य की सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक पत्रिका ‘साक़ी’ में छपी।

उनका पहला उपन्यास जि़द्दी 1941 में प्रकाशित हुआ। मासूमा, सैदाई, जंगली कबूतर, दिल की दुनिया, अजीब आदमी और बांदी उनके अन्य उपन्यास हैं। कलियाँ, चोटें, एक रात, छुई-मुई, दो हाथ दोज़ख़ी, शैतान आदि कहानी-संग्रह हैं। हिन्दी में कुँवारी व अन्य कई कहानी-संग्रह तथा अंग्रेजी में उनकी कहानियों के तीन संग्रह प्रकाशित जिनमें काली काफ़ी मशहूर हुआ।

कई फि़ल्में लिखीं और जुनून में एक रोल भी किया। 1943 में उनकी पहली फि़ल्म छेड़-छाड़ थी। कुल 13 फि़ल्मों से वे जुड़ी रहीं। उनकी आखि़री फि़ल्म गर्म हवा (1973) को कई अवार्ड मिले। साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा उन्हें ‘इक़बाल सम्मान’, ‘मख़दूम अवार्ड’ और ‘नेहरू अवार्ड’ भी मिले। उर्दू दुनिया में ‘इस्मत आपा’ के नाम से विख्यात इस लेखिका का निधन 24 अक्टूबर, 1991 को हुआ। उनकी वसीयत के अनुसार मुम्बई के चन्दनबाड़ी में उन्हें अग्नि को समर्पित किया गया।.

लिहाफ़ – एक उम्दा कहानी संग्रह है और हिंदुस्तानी पढ़ने वालों को ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए। 

इस किताब को खरीदने के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग कर सकते हैं। 

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