“ज़िंदगी जाने कैसी किताब है , जिसका इबारत अक्षर-अक्षर बनती है और फिर अक्षर-अक्षर टूटती है, बिखरती और बदलती है……
और चेतना की एक लम्बी यात्रा के बाद एक मुकाम आता है, जब अपनी जिंदिगी के बीते हुए काल का, उस काल के हर हादसे का, उसकी हर सुबह की निराशा का, उसकी हर दोपहर की बेचैनी का, उसकी हर संध्या की उदासीनता का, और उसकी जागती रातों का एक वह जायज़ा लेने का सामर्थ्य पैदा होता है, जिसकी तशरीह में नए अर्थों का जलाल होता है, और जिसके साथ हर हादसा वह कड़ी बनकर सामने आता है, जिस पर किसी ‘मैं ‘ ने पैर रखकर ‘मैं’ के पार जाना होता है ….”
यह किताब क्यों ?
अमृता जी के बारे में सबसे पहले गुलज़ार साहब से सुना था। उन्होंने उनकी लिखी पंजाबी कविताओं का अपनी आवाज दी थी। तब पहली बार उनकी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ सुनी थी जो बहुत अच्छी लगी थी और उनकी कहानी पर बनी फिल्म “पिंजर” भी देखी और अच्छी लगी। इसलिए उन्हें और उनके बारे में जानने का मन हुआ तो ये किताब पढ़ने की सोची।
किताब
रसीदी टिकट – उनकी आत्मकथा है और उन्होंने बड़े ही अलग अंदाज में बेबाक तरीके से अपने जीवन के बारे में, अपने जीवन से जुड़े अच्छे-बुरे, खुश और उदास किस्सों को कुछ अपने ही स्टाइल में लिखा है। अपने जीवन को छोटे-छोटे हिस्सों और किस्सों में बांधकर पिरोया है इसलिए पढ़ते हुए आपको बोरियत नहीं होगी।
रसीदी टिकट नाम रखने के पीछे भी एक किस्सा है – खुशवंत सिंह ने एक बार तंज करते हुए कहा था अमृता की पूरी जीवनी एक डाक टिकट पे लिखी जा सकती है , इसलिए जब अमृता जी ने जीवनी लिखने को सोची तो नाम रखा “रसीदी टिकट”।
जैसा अमूमन होता है, इस जीवनी की शुरुआत भी उन्होंने अपने जन्म के कुछ साल पहले अपने माता-पिता के परिचय के साथ किया। बचपन के कुछ किस्सों के साथ तेज़ी से गुजरते हुए सीधे आपको अपने व्यस्क जीवन में ले जाती हैं। अपने पहले विवाह और बच्चों के बारे में थोड़ा जिक्र है जो जानकारी के लिए दिया लगता है। बाकी उन्होंने अपने पहले प्रेम साहिर के बारे में , अपने साथी इमरोज़ के बारे में और अपने कवियत्री जीवन की यात्रा के बारे में अनेक किस्सों के द्वारा बताया है।
“उनकी विदेश यात्राओं के अनुभव और कुछ किस्से जो उन्होंने अपनी यात्रा दौरान अपनी डायरी में लिखे थे , उसके कुछ अंश भी आपको किताब में मिलेंगे।
” काहिरा आना मेरे लिए एक विलक्षण अनुभव है। एक ऎसी रेखा पर खड़ी हूँ, जिसके एक ओर काहिरा की हरियाली और दूसरी और एकदम रेगिस्तान। रेगिस्तान में बसने वाले वे पिरामिड, जिन्होंने पांच हज़ार वर्ष के सूरज देखे हैं। एक अरबी कहावत सामने खड़ी हुई दिखाई देती है – ‘दुनिया समय से डर्टी है, और समय पिरामिड से’ ……”
उनकी किताब में पंजाब के लेखकों और कवियों को लेकर एक तल्ख़ी भी है जो उनकी इस किताब में नज़र आती है। शायद इसलिए कि कुछ लेखकों को उनकी कुछ नज़्मों से आपत्ति थी, उनकी बेपरवाह अंदाज़ से आपत्ति थी। उनकी कुछ किताबें प्रतिबंधित भी हुई क्यूंकि या तो वो धार्मिक भावनाओं को हर्ट करती थी या उस समय के हिसाब से सेक्सुअली एक्सप्लिसिट मानी जाती थी। किताब पढ़ेंगे तो ज्यादा जान पाएंगे।
किताब की लेखन शैली काव्यमयी है, पढ़ते हुए आपको लगता है कि आप कोई कविता या नज़्म पढ़ रहे हों। जैसे पतंग को डोर से बाँधने पर वह ऊँची उड़ान उड़ पाती है , वैसे ही शब्दों को बांधकर ही एक उम्दा कविता या कहानी बनती है जो बिखरे शब्दों को एक नए मायने देती है।
लेखिका के बारे में
अमृता प्रीतम पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था।
अमृता प्रीतम का जन्म 1919 में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित।
1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी
जरूर पढ़ें
बीसवीं सदी की एक महान कवियत्री और लेखिका का जीवन परिचय खुद उनके शब्दों में। अगर आप उनका लिखा पढ़ चुके हैं तो “रसीदी टिकट” जरूर पढ़ें , अगर आपने उनको नहीं पढ़ा है तो इस किताब से शुरू कर सकते हैं।
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