माइक रहे माला रहे
आँख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे।
अपने शाहे वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे।।
देखने को दे उन्हें अल्लाह कंप्यूटर की आँख।
सोचने को कोई बाबा बाल्टीवाला रहे ।।
तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे।
आये दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे।।
एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए।
चार छै चमचे रहें माइक रहे माला रहे।।
यह किताब क्यों ?
अदम गोंडवी जी को मैंने बहुत हाल ही में जाना। उका एक बहुत मशहूर शेर जरूर कई बार सुना था पर मालूम नहीं था ये उनका है – “तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आकड़ें झूठे हैं ये दावे किताबी हैं ” जब कई बार इस शेर का ज़िक्र कई लोगों से सुना तो फिर खोजा और मालूम पड़ा ये बहुत बड़े कवि और शायर अदम गोंडवी ने लिखा है। उनकी ये किताब दिखी तो सोचा इसी से उनको पढ़ने की शुरुआत की जाये।
किताब
यह किताब अदम गोंडवी की ग़ज़लों/कविताओं का संग्रह है। उनकी कवितांए अपने आस-पास घटित हो रहे भ्र्ष्टाचार और शोषण के खिलाफ एक शशक्त आवाज है। वे हमेशा गरीब और शोषित वर्ग के लिए खड़े हुए और लड़े भी और यह उनकी शायरी में भी दिखता है। उन्होंने अपनी शायरी से समाज की विसंगतियों को उजागर किया फिर चाहे वह सरकार हो या सामाजिक संस्था उन्होंने बड़े ही बेबाकी से अपनी बात रखी, जैसे –
सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है।
दिल पे रख के हाट कहिये देश क्या आज़ाद है।।कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आँकिए।
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है।।
या फिर उनकी ये ग़ज़ल “कुत्तों के वास्ते ”
ताला लगा के आप हमारी ज़बान को।
कैदी न रख सकेंगे जेहन की उड़ान को।।बंगले बनेंगें पालतू कुत्तों के वास्ते।
हम आप तरसते ही रहेंगे मकान को।।
उनकी शायरी से पता चलता है कि वे जमीन से जुड़े कवि हैंऔर जमीन से जुड़े लोगों के लिए लिखते और बोलते हैं , उनकी शायरी में ईमानदारी और देसीपन है जो बात को सीधे कहने में विश्वास रखते हैं बिना किसी राग लपेट के। जैसे वो सीधे-सीधे शब्दों में कहते हैं –
बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को।
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पे इंसान को।।सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिये
गर्म रखें कब तलक नारों से दस्तरख़ान को।।
उनकी ये ग़ज़ल बताती है कि धार्मिक उन्माद और सोच के प्रति उनके क्या विचार थे, वो धर्म या जाती से परे हटकर गरीबी से लड़ने का आव्हान करते हैं।
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये।
अपनी कुर्सी के लिए ज़ज्बात को मत छेड़िये।।हममें कोई हूण कोई शक कोई मंगोल है।
दफन है जो बात अब उस बात को मत छेड़िये।।गलतियां बाबर की थी जम्मन का घर फिर क्यों जले।
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िये।।है कहाँ हिटलर हलाकू जार या चंगेज़ खां।
मिट गए सब कौम की औकात को मत छेड़िये।।छेड़िये एक जंग मिल-जुलकर ग़रीबी के ख़िलाफ़।
दोस्त मेरे मज़हबी नग़्मात को मत छेड़िये।।
अदम गोंडवी जी की यह ग़ज़ल/कविता संग्रह “समय से मुठभेड़” हर किसी शायरी/कविता प्रेमी को जरूर पढ़नी चाहिए।
लेखक परिचय
अदम गोंडवी (राम नाथ सिंह ; 22 अक्टूबर 1947 – 18 दिसंबर 2011) अट्टा परसपुर, गोंडा , उत्तर प्रदेश के एक भारतीय कवि थे। उन्होंने हिंदी में कविता लिखी, जो हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा को उजागर करती है.[2] उन्होंने हिंदी में कविता लिखी, जो हाशिए की जातियों, दलितों, गरीब लोगों की दुर्दशा को उजागर करती है। एक गरीब किसान परिवार में जन्मे, हालाँकि, उनके पास काफी कृषि योग्य भूमि थी। गोंडवी की कविता सामाजिक टिप्पणी के लिए जानी जाती थी
1998 में, मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया। 2001 में उन्हें अवधी / हिंदी में उनके योगदान के लिए शहीद शोभा संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान से सम्मानित किया गया।
दिसंबर 18, 2011 को गोंडवी की मृत्यु पेट के रोगों के कारण, आयुर्विज्ञान संजय गांधी स्नातकोत्तर संस्थान, लखनऊ में हो गई।
उनके काव्य संग्रह धरती की सता पार (पृथ्वी की सतह) और सामे से मुथबेड़े (समय के साथ मुठभेड़) काफी लोकप्रिय हैं।
बेहद उम्दा ग़ज़ल संग्रह, यदि आप कविता व् ग़ज़लों में रूचि रखते हैं तो यह किताब आपको जरूर पढ़नी चाहिये।
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