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प्रेम का बीज

मैं जहालत और नफ़रत का बीज हूँमैं इस मुल्क के किये धरे पे पानी फेर दूंगामैं तुम्हारी बुद्धि और विवेक हर लूँगामैं इस मुल्क के किये धरे पे पानी फेर दूंगा। मैं जो हूँ, पनपता हूँ वहां –जहाँ भूख होती है और ग़ुरबत खूब होती हैजहाँ करुणा  मृत और ईर्ष्या  खूब  होती हैजहाँ तर्क की […]

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एक सा नीरस होता है

क्यों तुले हो सबको एक जैसा बनाने में ?क्यों चाहते हो सब एक सा दिखें ? एक सा सोचें ?सब एक ही सुर में बोले, क्यों चाहते हो ? क्यों चाहते हो देश की, देश-प्रेम की परिभाषा एक हो ?नहीं हैं हम एक और ये ही हमारी खूबसूरती हैसोचो एक ही तरह के फूलों का

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मैं शर्मिंदा हूँ

मैं शर्मिंदा हूँअपने कुछ न कर पाने परसब देखते हुए चुप रह जाने पर अपने सरों पर अपना घर उठाये ये लोगदिनों- महीनों से पैदल चलते ये लोगशहरों से बाहर निकलती हर सड़क पर,भूखे प्यासे अपने गांव को जाते ये लोगलाखों में है, पर नज़र नहीं आते ये लोग। अख़बार की किसी तस्वीर में एक,पैदल

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सवाल पूछा करो

अगर आवाज़ उठाने को, सवाल पूछने को सही समझते होअगर महज़ एक मतदाता नहीं खुद को नागरिक समझते होतो आवाज़ उठाया करो और सवाल जरूर पूछा करो।जरूरी नहीं कि तुम धरने पर बैठोजरूरी नहीं कि तुम जुलूसों में जाओजरूरी नहीं कि तुम बड़ी बग़ावत करोतुम बस अपने पढ़े लिखे को जाया न करोहर बात को तर्क

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इक्कीसवीं सदी का भारत

मैं बड़ा हुआ हूँ ये बात सुनते सुनतेकि इक्कीसवीं सदी भारत की होगीपहले स्कूल, फिर कॉलेज और उसके बादजाने ही कितनी बार ये बात सुनी थी। यही बात अनेक बुद्धिजीवियों ने,विचारकों ने भी कई बार कही थीयूँ तो ये बात नेताओं ने भी कही थीकई बार, और जाने कितने मंचों सेबस जब वो ये बात

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किताबें पढ़ते  हो ?

किताबें पढ़ते  हो ?हर दिन कुछ आगे बढ़ते हो ? पढ़ा करो हर दिन कुछ आगे बढ़ा करो पढ़ो इतिहास कि ग़लतियाँ ना दोहराएँ  वहीपढ़ो इतिहास कि जान पाएं क्या है सही पढ़ो विज्ञान कि समझ आएं दुनिया के रहस्य सभीपढ़ो विज्ञान और बनो तर्कसंगत तुम भी पढ़ो कवितायेँ  व् कहानियाँ  दुनिया भर कीताकि समझ सको

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