कमलेश पांडे जी ने गुलज़ार साहेब के बारे में एक फंक्शन में कुछ कहा था। वो शुरू ऐसे हुआ था – ” सवाल ये उठा कि गुलज़ार को पढ़ें कि सुनें , देखें कि गुनगुनाएं, आखिर गुलज़ार को पाएं तो कहाँ पाएं ?
गुलज़ार को उनकी फिल्मों में ढूंढो , तो अपनी शायरी में मिलते हैं , शायरी में तलाश करो तो अपनी कहानियों में बरामद होते हैं , कहानियों में तहक़ीक़ात करो तो उनके क़दमों के निशान उनकी स्क्रिप्टों के सफहों की तरफ मुड़ते नज़र आते हैं, और स्क्रिप्टों के सहफ़े पलटो तो पता चलता है हुज़ूर किसी लड़की के जिगर से किसी लड़के की बीड़ी जलवा रहे हैं या किसी की आँखों से पर्सनल से सवाल करवा रहे हैं। और जब लगता है कि मामला खूबसूरत लड़कियों का है इसलिए शायद गुलज़ार यहाँ देर तक रुकें, जनाब वहां से फरार होकर बच्चों की किताबों में बोस्की को गिनती सिखा रहे होते हैं।”
तो कुछ यूँ हैं गुलज़ार ! बहुमुखी प्रतिभा के धनी, जो उन्हें पढ़ते हैं वो जानते उनके शब्दों की जादूगरी।वैसे तो गुलज़ार किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं , पर जो कमलेश जी ने कहा है उसके बाद अब क्या ही कहा जाये।
कुछ किताबें हैं, अगर आप कवितायेँ या नज़्मे पढ़ते हैं तो आपको जरूर पढ़नी चाहिए।
अगर आप कमलेश जी का वो वीडियो देखना चाहते हैं जिसका मैंने ऊपर ज़िक्र किया है तो नीचे दिए गए लिंक के जरिये वो देख सकते हैं।
त्रिवेणी
त्रिवेणी और पुखराज ये दो किताबें हैं जिनसे मैंने गुलज़ार साहब को पढ़ना शुरू किया। इससे पहले सिर्फ उनके गाने सुने थे, और सुनी थी उनकी आवाज पंचम को याद करते हुए गानों के बीच में।
त्रिवेणी एक अलग ही विधा है लिखने की, खुद गुलज़ार के शब्दों में, ” शुरू- शुरू में जब ये फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था किस संगम तक पहुंचेगी – त्रिवेणी नाम इसलिए दिया था, कि पहले दो मिसरे, गंगा जमुना की तरह मिलते हैं, और एक ख्याल , एक शेर को मुकम्मल करते हैं। लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है – सरस्वती। जो गुप्त है। नज़र नहीं आती ; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है। तीसरा मिसरा , कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है। छुपा हुआ है। “
उदहारण के लिए :
पुखराज
पुखराज – गुलज़ार की नज़्मों का संग्रह है जो 1994 में प्रकाशित हुआ था।
किताब के बारे में क्या कहा जाये, इसको परिभाषित या व्याख्या करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास। जब मैंने पढ़ा था तो इसलिए पढ़ा था कि गुलज़ार ने लिखा है। कुछ नज़्मे के जरिये आपको इस किताब से रूबरू कराते हैं।
दोस्त
पन्द्रह पाँच पचहत्तर
गुलज़ार की कविताओं के एक और संग्रह – इसमें पन्द्रह भाग हैं और हर भाग में पाँच कवितायेँ हैं इसलिए पंद्रह पाँच पचहत्तर।
इस कविता संग्रह के बारे में अशोक वाजपयी जी कहते हैं –
” गुलज़ार की कविता में उनकी और हमारी भी दुनिया बखूबी रची-बसी है : हम उसके बिम्बों और लयों में अपनी दुनिया या अपने अनुभव अनुगुंजित पाते हैं। लेकिन इन अनुगूंजों से परे हमें ऐसी आवाज़ें सुनाई पड़ती है , अर्थ की ऐसी परतें दिखाई देती हैं कि हमें अचरज होता है कि वे हमारी दुनिया से ही इस कवी के माध्यम से सामने आ रही हैं। “
इस किताब से एक कविता –
सरदार डैम
neglected poems translated by Pavan K varma
Green Poems translated by Pavan K Varma
This is a collection of pems by Gulzar. Green Poems is a tribute by Gulzar to nature. All the poems are in Hindi and translated to English by Pavan. K. Varma. Here are couple of them from the book-
Selected poems translated by Pvavan k varma
This one is again a brilliant collection of his poems which are in Hindi and translated to English by Pavan K Varma. This was the first in the series to come up as a bilingual collection of his poems. Here are some from this collection-
किताबें
किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं
अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके
जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधरे-उधरे हैं
कोई सफा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे टुंड लगते हैं वो अल्फ़ाज़
जिनपर अब कोई मानी नहीं उगते
जबां पर जो ज़ायका आता था जो सफ़ा पलटने का
अब ऊँगली क्लिक करने से बस झपकी गुजरती है
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, वो कट गया है
जब ऐसा लिखा हो तो पढ़ना तो बनता है। आप पढ़ें , किताबें अच्छी लगें तो औरों को भी पढ़ाएं।