आवारा कुत्ते

रात के लगभग दो बजे थे, सरकारी कालोनी के सामने वाले पार्क मे कुत्तों की एक बैठक लगी थी। करीब तीस कुत्ते एक घेरे मे बैठे हुए थे । उनकी आखों मे डर, गुस्सा और बेबसी झलक रही थी । बाहर रात का सन्नाटा था पर  सब के अंदर एक तूफान चल रहा था ।

इस झुंड का इलाका इसी सरकारी कॉलोनी के पास का था, जिसमें लगभग 50  मकान थे। कॉलोनी के सामने पार्क था और पार्क से आगे सड़क, सड़क के दूसरी तरफ एक हाईराइज अपार्टमेंट था। सड़क के दूसरी तरफ के कुत्तों का अलग दल था। दोनों दल अपने अपने इलाके में रहते थे, दूसरी तरफ जाना मतलब जान का खतरा।

मंगल के दल का खाने का बंदोबस्त कुछ हद तक कॉलोनी के कुछ  लोगों द्वारा दिए गए खाने से हो जाता था। पार्क की दीवार से लगी एक चाय समोसे और सिगरेट की गुमटी थी। कुछ लोग वहां पर कुत्तों को बिस्किट, ब्रेड दे देते थे। और  बाकी खाने के लिए ये दल इधर उधर घूमते रहते। रात को सोने के लिए पार्क में जाकर सब अपना–अपना कोना पकड़कर सो जाते। जिंदगी ठीक ही चल रही थी।

जैसा कि हर समाज में होता है, अच्छे और बुरे लोग। इन्हें भी रोज हर तरह के लोगों का सामना करना पड़ता था। कुछ लोग खाना–पानी दे देते, कुछ लोग इनको देखते ही दुत्कारने लगते, कुछ लोग डर जाते, तो कुछ पास आकर सर पर हाथ रखकर पुचकारते भी। लेकिन पिछले कुछ सालों से एक बड़ा बदलाव आया था कुत्तों और इंसानों के रिश्ते में।

एक तरफ तो कुछ इंसानों की कुत्तों के प्रति प्रेम और सहानभूति बढ़ी थी वहीं दूसरी तरफ एक वर्ग की इनके प्रति नफरत और असंवेदनशीलता भी बढ़ी थी। और इसके चलते हर गली– मुहल्ले में इंसानों के आपस में लड़ने और भिड़ने के अनेकों मुद्दों में एक और मुद्दा जुड़ गया था। ‘कुत्ता प्रेमी’ वर्सेज ‘नॉट कुत्ता प्रेमी’। खैर अभी मुद्दा था सुप्रीम कोर्ट के एक ऑर्डर का जिससे सब “आवारा” कुत्तों में भय मच गया था। “कुत्ता प्रेमी” बनाम ‘नॉट कुत्ता प्रेमी’ गैंग मे इस ऑर्डर से घमासान छिड़ गया था। इसी मुद्दे को लेकर मंगल के दल के सब कुत्ते पार्क में इकट्ठा हुए थे।

मंगल जो की इस दल का लीडर मालूम पड़ रहा था, चुप्पी तोड़ते हुए बोला, “ये सब जो हो रहा है ठीक नहीं है, न हमारे लिए और न ही इंसानों के लिए”।

भूरा गुस्से मे बोला, “ कल मेरे सामने मोती को उठाकर ले गए म्यूनिसपैलिटी वाले, उसके मुहँ को बंद करने के लिए लोहे का जो औजार लाए थे उससे उसका मुहँ छिल गया था और खून निकल रहा था”। भूरा की साँसे तेज़ चलने लगी और वो भर्राई आवाज़ मे बोला, “ मैने कोशिश करी पर कुछ नहीं कर पाया, पूरा दिन उसे शहर के सारे शेल्टर होम्स मे ढूंढा कहीं नहीं मिला, जाने कहाँ ले गए उसे”, इसके बाद उसके गले से मानो आवाज़ ही चली गई और वो दुख मे हुंकार मारने लगा।

मंगल जानता था कि आज भूरा का गुस्सा फूटेगा, पर वो इस तरह टूट जाएगा इसका अंदाजा  उसे नहीं था। मंगल ही भूरा और मोती को अपने झुंड मे लेकर आया था । जब ये दोनों तीन महीने के थे तब इनकी माँ को कोई गाड़ी कुचल कर चली गयी थी । तब से ये दोनों हर आती जाती सफेद गाड़ी पर भौंकते थे।

मंगल भूरा के पास गया और उसे सांत्वना दी फिर पूरे झुंड को संबोधित करते हुए कहा, “ इस समस्या का कोई समाधान निकालना होगा, जो हमारे और इंसानों दोनों के हित मे हो”।

भूरा गुस्से मे बोला, “यहाँ बात मरने जीने पर आ गई है तुम्हें ज्ञान सूझ रहा है । अरे हमारा कैसा हित? ऐसा कोई दिन गुजरा है जब हम मे से किसी ने लात, लाठी, पत्थर न खाया हो । ये इंसान तो हमे अपना दुश्मन समझते हैं और चाहते हैं हम जैसे गली के कुत्ते इन्हे आस-पास दिखाई भी न दें”।   

कालू ने हामी भरते हुए कहा, “और नहीं तो क्या। कहते हैं, ‘मैंस बेस्ट फ्रेंड’ – ऐसा करता है कोई बेस्ट फ्रेंड के साथ ? ये इंसान सब होते ही ऐसे हैं, मतलबी। अपने मतलब के लिए हमे पहले पालतू बनाया और अब कहते हैं , ‘वी आर ए मेनिस टू सोसाइटी’- मेनिस टू सोसाइटी?”  

मंगल ने कालू के टूटे पैर की ओर देखा और सोचने लगा, इसका गुस्सा भी जायज है। एक दिन किसी ने यूं ही मस्ती मे सोये हुए कालू पर अपनी बाइक चढ़ा दी थी । दो दिन तक दर्द के मारे कराहता रहा था कालू।

मिनी ने शांत और ठहरी आवाज़ मे कहा, “ऐसा नहीं है कालू । इस समाज मे हर तरह के लोग होते हैं , जैसे हर तरह के कुत्ते होते हैं । अब कितने ही कुत्तों ने बेवजह कितने ही बच्चों, बूढ़ों और लोगों पर हमला किया और कितनों की तो मौत भी हुई है”।  

भूरा गुस्से मे तमतमाता हुआ बोला, “तो इसका मतलब ये हुआ कि आदमी शहर के सारे कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम्स मे डाल दे, हैं इनके पास इतने शेल्टर होम्स ? और जितने हैं उनकी हालत देखी है, उससे अच्छा तो हम सड़कों पर ही ठीक हैं”।  

“ये तुम सही कह रहे हो भूरा”, मिनी बोली, “मेरे कहने का मतलब ये था कि सब लोग एक जैसे  नहीं होते। कुछ अच्छे लोग भी हैं जो हमारे लिए लड़ रहे हैं, जो हर रोज जगह- जगह जाकर जख्मी और बीमार कुत्तों को ढूंढते हैं और उनकी मदद करते हैं । कालू, तुम्हें भी तो रेखा दीदी और सुयश भईया ही अस्पताल लेकर गए थे। जबकि तुमने भईया को काट भी लिया था”।

भूरा कटाक्ष मारते हुए बोला, “वाह क्या बात है मिनी । ये तुम कह रही हो जिसको तुम्हारे अपने घर वाले ही रात को यहाँ सड़क पर छोड़ कर चले गए थे”।

मंगल ने देखा बात कहीं की कहीं जा रही है। उसने भूरा को इशारा किया वो चुप हो गया। मंगल ने मिनी को देखा उसकी आँखों मे उदासी उतर आई थी। मंगल की आखों के सामने वो दिन आ गया जब उसे मिनी मिली थी। 

मिनी को एक परिवार ने कोविड के दौरान गोद लिया था, और पिछले साल ही  एक रात उसे यहां से कुछ दूर सड़क पर छोड़ कर चले गए थे। मिनी को समझ नहीं आया था कि उसे यहां छोड़ कर वो कहां चले गए। वो पूरे दो दिन सड़क के किनारे ही उनका इंतजार करती रही पर वो नहीं आए। जब वो तीन महीने की थी तबसे वो इस परिवार के साथ थी, वो परिवार जिसे वो अपना समझती थी, जो उसे बहुत प्यार करते थे। मिनी के लिए वो लोग उसकी पूरी दुनिया थे।

कितने ही दिनों तक वो सड़क के कुत्तों से बचती रही, कोई भी सुनसान जगह देख कर बस वहां पड़ी रहती, जब भूख सही न जाती तब बाहर निकलती। उसको पता ही नहीं था सड़कों पर खाना कैसे मिलता है, कहां मिलता है। घर पर तो हमेशा उसकी प्लेट में उसे अच्छा–अच्छा खाना मिलता था। भूख लगने पर उसे घर की याद आती,घर की याद आती तो खाना नहीं अपने इंसानों की याद आती और फिर  उसका मन और दुखी हो जाता।

एक दिन मंगल ने ही मिनी को देखा था, एकदम कमजोर और घबराई सी। मंगल मिनी के हाव–भाव देख कर समझ गया था इसको छोड़ा गया है। मंगल उसके पास गया और पूछा कितने दिन से भूखी है? मिनी चुप रही।।मंगल ने पूछा, भूख लगी है? चल मेरे साथ। और तब से मिनी इस दल की एक सदस्य बन गई।

मिनी ने उदासी भरी आवाज मे कहा, “भूरा जो मेरे साथ हुआ बुरा हुआ, इससे सारे इंसान तो बुरे नहीं बन जाते । और मैं तो अपने परिवार वालों को भी बुरा नहीं मानती, रही होगी उनकी कोई मजबूरी। पर जब तक मै उनके साथ रही दोनों ने मुझे बहुत प्यार दिया। अभी सवाल ये है कि आगे क्या होगा? जब कल फिर म्यूनिसपैलिटी की गाड़ी आएगी तब क्या करेंगे?”

भूरा गरजा, “करेंगे क्या, लड़ेंगे। मुझे अगर वो आदमी दिख गया जिसने मोती को पकड़ा था तो उसे तो मैं छोड़ूँगा नहीं, फिर मेरा चाहे जो हो”।  

मंगल बोला, “ऐसा नहीं होता भूरा, हम नहीं लड़ सकते उनसे, ये तुम्हें भी पता है। और इस तरह का बर्ताव करने से तो लोग और भी हमारे दुश्मन हो जाएंगे। अभी क्या कम हैं हमारे खिलाफ जो तुम और बढ़ाना चाहते हो?

भूरा बोला, “ मेरी आंखों के सामने मेरे भाई मोती को पकड़कर ले गए। मैंने बड़ी कोशिश की मोती को छुड़ाने की, लेकिन एक गाड़ी के साथ पांच–सात म्युनिसिपालिटी वाले थे, सबके पास डंडे और लोहे के रोड थी। वो मार पीटकर सबको गाड़ी में डाल रहे थे, कुछ जो उनके बस में नहीं आ रहे थे उन्हें फंदे में फंसाकर पकड़ रहे थे”।

कहते-कहते भूरा का गला रुँध गया, वो कुछ देर रुका, एक गहरी सांस छोड़ी और बोला, “किसी के गले में फंदा फंसा था, किसी की कमर में, किसी के पैरों में, जहां फंदा फंस जाता वहीं से उठा लेते थे। किसी का गला घुट रहा था, कोई उल्टा लटका था और म्युनिसिपालिटी वाले सबको खींच कर गाड़ी में डाल रहे थे”। इस सब मे एक जोर की लाठी भूरा की पिछली टांग पर भी पड़ी थी। उसकी टांग सूजी हुई थी और उसे चलने मे काफी तकलीफ हो रही थी।

भूरा और मोती सड़क पर ही पैदा हुए थे, और अपनी माँ के मरने के बाद वो दोनों एक दूसरे का सहारा थे। वो एक दूसरे के लिए किसी से भी भिड़ जाते थे और आस-पास के कुत्ते दोनों भाइयों से डर कर रहते थे। इन दोनों की वजह से दूसरे इलाके के कुत्ते मंगल के झुंड से नहीं उलझते थे।


ये सब बातें करते-करते सुबह के चार बज चुके थे। सामने के फ्लैट से कुछ लोग निकलकर पार्क मे सैर करने पहुँच रहे थे, ज्यादातर रिटाइरेड और बूढ़े, जिनकी नींद जल्दी खुल जाती थी। एक तरफ लोग उठकर सैर को आ रहे थे और एक तरफ ये थे जिन्हे रात भर नींद नहीं आई। पूरी रात यही सोचते रहे कि कल क्या होगा। एक डर और उदासी का माहौल था।

मंगल उठा और घेरे से अलग जाकर पास ही के एक पेड़ के चारों ओर बने चबूतरे पर जाकर खड़ा हो गया और बोला, “ शायद हमको ढूंढते हुए रेखा दीदी और सुयश भईया आयें, देखें वो क्या कहते हैं। हालात तो खराब ही हैं, कल चाय की दुकान पर टीवी पर देखा पुलिस हमारे समर्थन मे सड़कों पर आए लोगों को भी पकड़ कर ले जा रही थी। पता नहीं उनके साथ क्या हुआ”।

मंगल थोड़ा रुका, आसमान की तरफ कुछ सोच मे देखा और बोला, “सुबह होने को है, कुछ ही देर मे म्यूनिसपैलिटी वाले आ जाएंगे, हमे अपने आप को बचाना है, गुस्से और तैश मे आकार उनसे भिड़ना नहीं है”। मंगल ने भूरा की ओर देखते हुए कहा।

भोलू, जो उम्र मे मंगल के आस-पास ही था और अक्सर चुपचाप ही रहता था, आज भी अब तक चुप था। मंगल की बात खत्म होने के बाद वो बोला, “ हाँ, पहला काम तो अपने आप को बचाना ही है और इसके अलावा हम कर भी क्या सकते हैं। अदालत के इस फैसले  से हम लड़ तो नहीं सकते, इंसान ही हमारे लिए लड़ रहे हैं और वो ही लड़ सकते हैं ”।

ये कहते हुए भोलू उठा और मंगल के पास जाकर खड़ा होकर बोला, “ मैंने हम सब ‘आवारा कुत्तों’ की तरफ से एक चिट्ठी लिखी है अदालत के नाम, और फैसला सुनाने वालों के नाम। ये हम रेखा दीदी और सुयश भईया को दे देंगे और कहंगे ये हमारी तरफ से अदालत मे पढ़ा जाए, ये हमारा पक्ष है”।

आदरणीय जज महोदय/महोदया,

हम सब की आपसे गुजारिश है कि अपने दिए अदालती फैसले पर पुनर्विचार करें। अपना फैसला  लेते समय हमारे बारे मे भी सोचें, हम भी इसी दिल्ली का हिस्सा हैं, यही पैदा हुए, यहीं हमारे माँ-बाप पैदा हुए। अब आप कहते हैं हम सब को यहाँ से निकालकर कहीं बाहर या फिर शेल्टर होम्स मे डाल दें। ये तो ज्यादती हुई न हुज़ूर। माना कि हम मे से कुछ कुत्ते बिगड़ैल हो गए हैं और लोगों को परेशान करते हैं, डराते हैं, भगाते हैं और काटते हैं, और इस वजह से लोगों की मौत भी हुई है । जो ऐसे हैं उन्हे आप पकड़कर जरूर ले जाएँ । पर सड़क पर रहने वाला हर कुत्ता ऐसा नहीं है, सबको देना कहाँ तक जायज है?

सरकार हमारा हर दिन वैसे ही बहुत मुश्किलों से भरा होता है। सुबह उठते ही सोचते हैं आज खाने को मिलेगा या नहीं। बारिश होती है तो सोचते हैं कहाँ जा कर बचें, ठंड मे गरम जगह ढूंढने की और चिलचिलाती धूप मे छाया ढूँढने की जद्दोजहत । कहीं कोई गाड़ी कुचल न दे, कहीं कोई पत्थर न मारे दे, कोई लात न मारे दे हर रोज इसी डर में जीते हैं।

हमारे साथ रहने वाले दूसरे कुत्ते ही हमारा परिवार हैं। हम लोग ही एक दूसरे का सहारा हैं अब अगर आप के निर्देश पर हम को यहाँ से भगा दिया जाएगा तो हम सब एक दूसरे से बिछड़ जाएंगे। आप सोचें अगर इंसान को उसके परिवार से जबरदस्ती अलग कर दिया जाए तो क्या वो खुश रह पाएगा?

आप शायद जानते न हों, जिस सरकार कालोनी के सामने हम रहते हैं वो दस साल पहले ही बनी हैं। हम मे से कुछ कुत्ते उस कालोनी के बनने के पहले से यहाँ रह रहे हैं, जहां वो फ्लैट्स बने हैं वहाँ हम रहते थे। फ्लैट्स बने तो वहाँ से खदेड़ दिए गए । अब आप का आदेश है कि हमे यहाँ से भी खदेड़ा जाए, ये तो ज्यादती है सरकार।

कुछ कुत्तों की गलती की सजा सबको देना ये तो न्याय की बात नहीं हुई । और आपको भी शायद जैसा टीवी पर दिखाया जा रहा वैसा ही कुछ बताया गया होगा । “कुत्तों का आतंक”, “खूनी कुत्ते”, “कुत्तों के शिकार लोगों की गुहार” ऐसी हेडलाइन्स के साथ खबरें चलाकर टीवी वाले कुत्तों के खिलाफ नफरत और डर का माहौल बना रहे हैं। ये टीवी वालों का भी अजब ही खेल है सरकार, इनका तो लगता है काम ही नफरत फैलाना है, ये लोग आदमियों से अब कुत्तों पे आ गए।

असलियत इससे बहुत अलग है सरकार। यदि कोई इंसान हमें खाना खिला दे, प्यार से पुचकार दे, तो हम उसके वफादार बन जाते हैं । हम जान छिड़क देते हैं उस पर। हमारे लिए उनका खाना भी इतना ज़रूरी नहीं, जितना कि उनका का प्यार। जो चीज जिसे कम मिलती है वो ही उसकी कीमत समझता है सरकार।

आपसे हमारी विनती है हमें यहाँ से मत भगाइए। हम किसी को नुकसान या तकलीफ नहीं पहुचाएंगे। हमारे हिस्से की थोड़ी सी जमीन और थोड़ा सा आसमान हमसे न छीने।

 धन्यवाद !

सरकारी फ्लैट्स के सामने वाले पार्क के निवासी।

सब बड़े ध्यान लगाकर सुन रहे थे ।

मंगल गौर से भोलू को देख रहा था, वो बोला, ” बहुत सही लिखा है, हम सब के दिल की बात। कल ही ये चिट्ठी रेखा जी को दे देंगे”।

भूरा झल्लाहट से बोला, “और उससे क्या होगा? सब ठीक हो जाएगा ?”

मिनी उठकर भूरा के पास गई और बोली, “ठीक का तो पता नहीं पर उम्मीद तो कर सकते हैं कि हमारी बात सुनी जाए और हो सकता है इंसानों को भी समझ मे आए कि अदालत का ये फैसला न सिर्फ गलत है बल्कि इसे लागू करना भी नामुमकिन है “।

इसके बाद सब शांत हो गए। आने वाले कल को लेकर मन में डर तो था, लेकिन एक उम्मीद भी थी कि रेखा दीदी और सुयश भईया जैसे लोग उनके साथ हैं और उनके लिए पूरी जान लगा देंगे। कुत्तों की इस सभा में भले ही निराशा और बेचैनी छाई हुई थी, पर दिल के भीतर यह विश्वास भी था कि इंसान और जानवर साथ रहकर ही इस शहर की असली तस्वीर बनाते हैं। अगर एक पक्ष मिटा दिया गया तो तस्वीर हमेशा के लिए अधूरी रह जाएगी।

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