“पीली छतरी वाली लड़की” नाम से तो एक प्यारी सी प्रेम कहानी मालूम पड़ती है और है भी, लेकिन यह सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है. उदयप्रकाश जी की यह उपन्यास है एक नौजवान राहुल और अंजली के प्रेम की। यूनिवर्सिटी मे प्रेम का पनपना, उसका उड़ान भरना, और इन सब के बीच हंसी-ठिठोली और प्यार भारी छेड़छाड़. इन सब के इतर इस प्रेम कहानी के माध्यम से उदयप्रकाश जी हमारे समाज और उसमे पनपने वाली अनेक विषमताओं, विरोधाभाष और पाखंड को बड़े ही सहजता से उजागर किया है. जैसे-जैसे आप किताब के पन्नों को उलटते हुए कहानी मे आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे उसके किरदारों के और करीब आ जाते हैं और उत्सुक रहते हैं जाने के लिए कि अब आगे क्या होने वाला है. लेखक अपनी जादूगिरी लिखाई से कई गंभीर मुद्दों को सहजता से पन्नों पर उतारते हैं.
राहुल ने किन्नू दा की बातों से प्रभावित होकर ऐन्थ्रपालजी करने के लिए एम.ए. मे दाखिला ले लिया। किन्नू दा न सिर्फ राहुल के फुफेरे भी थे बल्कि उसके लिए प्रेरणा स्रोत भी थे. उनकी बातें और कहानियाँ सुकनर राहुल को लगता था उसे भी ऐन्थ्रपालजी मे पी एच डी करके देश के गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करना चाहिए. किन्नू दा की बातें उसे सम्मोहित करती और उसे लगता क्या रखा है ऑर्गैनिक केमिस्ट्री मे.
लेकिन एक जाति ऐसी है, जिसने अपनी जगह ‘स्टेटिक’ बनाये रखी है. बिल्कुल स्थिर. सबसे ऊपर. हजारों साल से…वह जाति है ब्राह्मण. शारीरिक श्रम से मुक्त. दूसरों के परिश्रम, बलिदान और संघर्ष को भोगने वाली संस्कृति के दुर्लभ प्रतिनिधि. इस जाति ने अपने लिए श्रम से अवकाश का एक ऐसा ‘स्वर्गलोक’ बनाया, जिसमें शताब्दियों से रहते हुए इसने भाषा, अंधविश्वासों, षड्यंत्रों, संहिताओं और मिथ्या चेतना के ऐस मायालोक को जन्म दिया, जिसके ज़रिये वह अन्य जातियों की चेतना, उनके जीवन और इस तरह समूचे समाज पर शासन कर सके.
इतिहास असल में सत्ता का एक राजनीतिक दस्तावेज़ होता है…जो वर्ग, जाति या नस्ल सत्ता में होती है, वह अपने हितों के अनुरूप इतिहास को निर्मित करती है. इस देश और समाज का इतिहास अभी लिखा जाना बाकी है.
उसे लगता था इतिहास अब वो ही लिखेगा. यही सोचकर अड्मिशन ले लिया. पर कुछ ही दिनों बाद पीली छतरी वाली लड़की सर पर चढ़ कर बोलने लगी. यूनिवर्सिटी मे मित्र मंडली मे अंजली किसी मित्र की मित्र थी और कैन्टीन मे अक्सर ग्रुप मे मिलन होता था. बात यहाँ से कुछ आगे बढ़ी और बातें होने लगी. अंजली जोशी, पी डब्ल्यू डी मिनिस्टर की बेटी थी और हिन्दी साहित्य मे एम. ए. कर रही है. राहुल ने इसी के चलते हिन्दी साहित्य मे अपना ट्रांसफर करवा लिया और वहाँ से इनकी प्रेम कहानी और परवान चढ़ती है.
लेखक प्रेम कहानी को इस तरह गढ़ते हैं मानो खुद जिया हो. पाठक भी पढ़ते समय खुद को ही अंजली या राहुल समझने लगते हैं या फिर यूनिवर्सिटी के कोई राहुल और अंजली अनायास ही याद या जाते हैं. ये उनके साथ होता है जिन्हे यूनिवर्सिटी से नेकले अरसा हो चुका है. कहने का अर्थ ये है कि कहानी के पात्र काल्पनिक होते हुए भी जाने पहचाने लगते हैं. ये एक अछे लेखक की निशानी है. प्रेम के शुरुआत की झिझकन, संकोच, हंसी-मजाक, शरारतें और प्रेम मे पड़ने का वो क्षण और अनुभव लेखक की कलम से जीवंत हो जाते हैं.
इस प्रेम कहानी के आगे बढ़ते हुए लेखक हमे बड़े ही सरल तरीके से हमारे समाज की जटिल और गहरी समस्याओं से अवगत करते हैं. हिन्दी विभाग मे ब्राह्मणों का वर्चस्व और जाती को लेकर अलिखित भेदभाव. यूनिवर्सिटी मे लोकल गुंडे मावलियों का हस्तकक्षेप और क्षेत्रीय भेद भाव. कहानी मे समय-समय पर व्यंग का कटाक्ष कवि की कलम से निकलता है जो बहुत ही मारक है.
यह ठगों, मवालियों, जालसाजों, तस्करों और ठेकेदारों का समय है. और इस वक़्त हर ईमानदार, शरीफ और सीधा-सादा हिंदुस्तानी इस राज में कश्मीरी है या मणिपुरी है या फिर नक्सलवादी.
देखो, एक चुटियाधारी वनमानुष पेप्सी पीता हुआ राम लला के मंदिर के सामने ब्रेक डांस कर रहा है और उसके लिंग में देसी कट्टा बंधा हुआ है. और उसकी अंटी में दुबई के इब्राहीम भाई का हवाला रुपया है. उसे वोट दो, वह हिंदुत्ववाद लाएगा.
किन्नू दा और राहुल के बीच की संजीदा बातें समाज मे फैली असमानताओं को दर्शाती है. ये उपन्यास आपको जहां राहुल और अंजली के प्रेम चित्रण से गुदगुदाएगी वहीं बहुत से गंभीर मुद्दों से सोचने पर मजबूर भी करेगी. ये अपने आप मे एक सम्पूर्ण उपन्यास है.
लेखक परिचय
उदयप्रकाश का जन्म 1952 में हुआ, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि बीसवीं सदी का उत्तरार्ध जिस दिन शुरू हो उदय प्रकाश का जन्म भी उसी दिन हो, इसलिए उनका आधिकारिक जन्मदिन 1 जनवरी 1951 है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के सीमांत ज़िले अनूपपुर के छोटे-से गाँव सीतापुर में जन्मे उदय प्रकाश का बचपन यहीं बीता और प्राथमिक शिक्षा भी यहीं हुई। उन्होंने विज्ञान में स्नातक किया और हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध छात्र रहे उदय प्रकाश आठवें दशक के चर्चित कवि रहे। कहानी के क्षेत्र में भी वह एक स्थापित हस्ताक्षर हैं। उनकी कहानियों का अनुवाद कई भारतीय और विश्व की प्रमुख भाषाओं में हुआ है। ‘तिब्बत’ कविता के लिए उन्हें 1980 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिला और उपन्यास ‘मोहनदास’ के लिए 2010 में उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।