Book Reviews Gulzar

गुलज़ारनामा – 6 किताबें कविताओं की

कमलेश पांडे जी ने गुलज़ार साहेब के बारे में एक फंक्शन में कुछ कहा था। वो शुरू ऐसे हुआ था  –   ” सवाल ये उठा कि गुलज़ार को पढ़ें कि सुनें , देखें कि गुनगुनाएं, आखिर गुलज़ार को पाएं तो कहाँ पाएं ?
गुलज़ार को उनकी फिल्मों में ढूंढो , तो अपनी शायरी में मिलते हैं , शायरी में तलाश करो तो अपनी कहानियों में बरामद होते हैं , कहानियों में तहक़ीक़ात करो तो  उनके क़दमों के निशान उनकी स्क्रिप्टों के सफहों की तरफ मुड़ते नज़र आते हैं, और स्क्रिप्टों के सहफ़े पलटो तो पता चलता है हुज़ूर किसी लड़की के जिगर  से किसी लड़के की बीड़ी जलवा रहे हैं या किसी की आँखों से पर्सनल से सवाल करवा रहे हैं। और जब लगता है कि मामला खूबसूरत लड़कियों का है इसलिए शायद गुलज़ार यहाँ देर तक रुकें, जनाब वहां से फरार होकर बच्चों की किताबों में बोस्की को गिनती सिखा रहे होते हैं।”

तो कुछ यूँ  हैं गुलज़ार ! बहुमुखी प्रतिभा के धनी, जो उन्हें पढ़ते हैं वो जानते उनके शब्दों की जादूगरी।वैसे तो गुलज़ार किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं , पर जो कमलेश जी ने कहा है उसके बाद अब क्या ही कहा जाये।  

कुछ किताबें हैं, अगर आप कवितायेँ या नज़्मे पढ़ते हैं तो आपको जरूर पढ़नी चाहिए।

 

अगर आप कमलेश जी का वो वीडियो देखना चाहते हैं जिसका मैंने ऊपर ज़िक्र किया है तो नीचे दिए गए लिंक के जरिये वो देख सकते हैं। 

6 books of poetry by Gulzar on bookspoetryandmore

त्रिवेणी



त्रिवेणी और पुखराज ये दो किताबें हैं जिनसे मैंने  गुलज़ार साहब को पढ़ना शुरू किया। इससे पहले सिर्फ उनके गाने सुने थे, और सुनी थी उनकी आवाज पंचम को याद करते हुए गानों के बीच में। 

त्रिवेणी एक अलग ही विधा है लिखने की, खुद गुलज़ार के शब्दों में, ” शुरू- शुरू में जब ये फॉर्म  बनाई थी, तो पता नहीं था किस संगम तक पहुंचेगी – त्रिवेणी नाम इसलिए दिया था, कि पहले दो मिसरे, गंगा जमुना की तरह मिलते हैं, और एक ख्याल , एक शेर को मुकम्मल करते हैं।  लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है  – सरस्वती। जो गुप्त है।  नज़र नहीं आती ; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है।  तीसरा मिसरा , कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है।  छुपा हुआ है। “

उदहारण  के लिए :

उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलती रही वो शाख़ फ़िज़ा में
 
अलविदा कहने को ? या पास बुलाने के लिए ?
 
—————————
 
ज़मीं भी उसकी , ज़मीं की ये नियामतें उसकी
ये सब उसी का है , घर भी , ये घर के बन्दे भी
 
ख़ुदा से कहिये , कभी वो भी अपने घर आये !
 
—————————-
 
सांवले साहिल पे गुलमोहर का पेड़
जैसे लैला की मांग में सिन्दूर
 
धर्म बदल गया बिचारी का !
 
इसमें पहले दो मिसरे अपने आप में मुक्कमल हैं ,कम्पलीट  हैं।  पर तीसरा मिसरा जुड़ते ही मानी बदल जाते हैं। ऐसे ही मिसरों से बनी है त्रिवेणी। 
 
 
Booklist on bookspoetryandmore - PukhrajA collection of nazms by Gulzar

पुखराज

पुखराज – गुलज़ार  की  नज़्मों का संग्रह है जो 1994  में प्रकाशित हुआ था। 

किताब के बारे में क्या कहा जाये, इसको परिभाषित या व्याख्या करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास।  जब मैंने पढ़ा था तो इसलिए पढ़ा था कि गुलज़ार ने लिखा है।  कुछ नज़्मे के जरिये आपको इस किताब से रूबरू कराते हैं। 

दोस्त 

बे यारो मददगार ही कटा था सारा दिन
कुछ खुद से अजनबी सा, कुछ तनहा उदास सा
साहिल पे दिन बुझा के मैं लौट आया फिर वहीँ
सुनसान सी सड़क के इस ख़ाली से माकन में
 
दरवाज़ा खोलते ही मेज़ पर किताब ने
हलके से फड़फड़ा के कहा —
“देर कर दी दोस्त। “
 
क़ब्रें 
कैसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ 
जिस्म की ठंडी सी
तारीक सियाह कब्र के अंदर  !
ना  किसी सांस की आवाज़
ना सिसकी कोई 
ना कोई आह , ना जुम्बिश 
ना ही आहट  कोई 
 
ऐसे चुपचाप ही मर जाते हैं कुछ लोग यहाँ 
उनको दफ़नाने की ज़हमत भी उठानी नहीं पड़ती !
 
 

पन्द्रह पाँच पचहत्तर

गुलज़ार की कविताओं के एक और संग्रह – इसमें पन्द्रह  भाग हैं और हर भाग में पाँच कवितायेँ हैं इसलिए पंद्रह पाँच पचहत्तर। 

 इस कविता संग्रह के बारे में अशोक वाजपयी जी कहते हैं –

” गुलज़ार की कविता में उनकी और हमारी भी दुनिया बखूबी रची-बसी है  : हम उसके बिम्बों और लयों में अपनी दुनिया या अपने अनुभव अनुगुंजित पाते हैं।  लेकिन इन अनुगूंजों से परे हमें ऐसी आवाज़ें सुनाई पड़ती है , अर्थ की ऐसी परतें दिखाई देती हैं कि  हमें अचरज होता है कि वे हमारी दुनिया से ही इस कवी के माध्यम से सामने आ रही हैं। “

इस किताब से एक कविता –

सरदार डैम

तीन पहाड़ों बीच बनी  इस वादी में
बंध बनेगा !
डैम बनेगा !
 
सर पर लो, और चलो उठा लो, छाबा खोंचा इस गाँव का
रिश्ते-नाते , आस-पड़ोस, अब सब रेहड़ी पर रक्खो और लुढ़काओ उनको
झल्ली में डालो मिट्टी पिछली पुश्तों की, और माज़ी कंधे पे रखलो
जेब में भर लो कब्रें अपनी
रीत-रिवाज़ और कल्चर-वल्चर, गर्दन में लटका के उठो
कमर पे बांधो नंगे बच्चे…..
पीपल-तुलसी , मढ़ी-वढ़ी, दरगाहें , मीठे कुँए , चलो सब औंधे कर दो
कुछ करो अब !
 
तीन पहाड़ों में से रेंगता , बल खाता जो सदियों से बहता आया है
कुंडली मार कर बैठेगा अब वो दरिया इस वादी में !

 

book list on bookspoetryandmore - A collection of poems by Gulzar

neglected poems translated by Pavan K varma

Don’t go by the name, a poetry collection of his was published by the name “Selected Poems” and these were the poems not included in that so I guess  he named it  Neglected Poems. not be neglected at all. This is a bilingual book, original poems in Hindi and their translation to English by Pavan K Varma. 
 
Here is one from this collection-
 
 
 
सर्दी थी और कोहरा था
 
सर्दी थी और कोहरा था और सुबह की बस आधी आँख खुली थी ,
आधी नींद में थी !
शिमला से जब नीचे आते
एक पहाड़ी के कोने में
बस्ते जितनी बस्ती में इक
बटवे जितना मंदिर था
साथ लगी मस्जिद , वो भी लॉकेट जितना
नींद भरी दो बाहों जैसे मस्जिद के मीनार गले में मंदिर के ,
दो मासून खुदा सोये थे !
इक बूढ़े झरने के नीचे !!
 
 
बाकी क्या कहा जाए और लिखा जाए , किताब पढ़ें और आनंद लें। 
 
 
 
book list on bookspoetryandmore - Green Poems a collection of poems by Gulzar

Green Poems translated by Pavan K Varma

This is a collection of pems by Gulzar. Green Poems is a tribute by Gulzar to nature. All the poems are in Hindi and translated to English by Pavan. K. Varma. Here are couple of them from the book-

दरख़्त सोचते हैं जब, तो फूल आते हैं
 
दरख़्त सोचते हैं जब, तो फूल आते हैं
वो धूप में डुबो के उँगलियाँ
ख़्याल लिखते हैं , लचकती शाखों पर
तो रंग रंग लफ्ज़ चुनते हैं और बुलाते हैं
 
हमारा शौक देखिये. . . .
कि गर्दन ही काट लेते हैं
जहाँ कहीं महकता है कोई !
 
पहाड़ों से बिछड़ के लौटता हूँ तो. . . . .
 
पहाड़ों से बिछड़ के लौटता हूँ तो
कई दिन तक उतरता रहता हूँ उनसे,
ख़ला में लटका रहता हूँ
कहीं पांव नहीं पड़ते !
बहुत से आस्माँ बांहों में भर जाता है , वो नीचे नहीं आता
हवाएं फूल जाती हैं , पकड़ के पसलियां मेरी
कभी रातें उठा लेती हैं बग़लों से
कभी दिन तेल देते हैं हवा में
कई दिन तक मेरे पांव नहीं लगते जमीन से !!
 
 
Book list on bookspoetryandmore about the poetry books of Gulzar

Selected poems translated by Pvavan k varma

This one is again a brilliant collection of his poems which are in Hindi and translated to English by Pavan K Varma. This was the first in the series to come up as a bilingual collection of his poems. Here are some from this collection-

 

किताबें

किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाकातें नहीं होती
जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं
अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके
जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधरे-उधरे हैं
कोई सफा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे टुंड लगते हैं वो अल्फ़ाज़
जिनपर अब कोई मानी नहीं उगते
जबां पर जो ज़ायका आता था जो सफ़ा पलटने का
अब ऊँगली क्लिक करने से बस झपकी गुजरती है
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, वो कट गया है

जब ऐसा लिखा हो तो पढ़ना तो बनता है।  आप पढ़ें , किताबें अच्छी लगें तो औरों को भी पढ़ाएं। 

 

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