क्यों तुले हो सबको एक जैसा बनाने में ?
क्यों चाहते हो सब एक सा दिखें ? एक सा सोचें ?
सब एक ही सुर में बोले, क्यों चाहते हो ?
क्यों चाहते हो देश की, देश-प्रेम की परिभाषा एक हो ?
नहीं हैं हम एक और ये ही हमारी खूबसूरती है
सोचो एक ही तरह के फूलों का गुलदस्ता कब तक भायेगा ?
एक ही रंग से क्या आँखें ऊब नहीं जाएँगी ?
एकता और एकरूपता में फर्क होता है, समझो
उठाकर देखा इतिहास, तुमसे पहले भी कई थे
जो खुद को, खुद की नस्ल को सर्वोपरि समझते थे
जो प्रेम से नहीं ताक़त से सब जीतना चाहते थे
पर अंजाम जो हुआ है सबने देखा है
तुम भी कामयाब नहीं हो पाओगे |