
मैं जहालत और नफ़रत का बीज हूँ
मैं इस मुल्क के किये धरे पे पानी फेर दूंगा
मैं तुम्हारी बुद्धि और विवेक हर लूँगा
मैं इस मुल्क के किये धरे पे पानी फेर दूंगा।
मैं जो हूँ, पनपता हूँ वहां –
जहाँ भूख होती है और ग़ुरबत खूब होती है
जहाँ करुणा मृत और ईर्ष्या खूब होती है
जहाँ तर्क की जगहंसाई और कुतर्क पर तालियां होती हैं
जहाँ धर्म, जात -पात, अमीर- गरीब की एक गहरी खाई होती है
ऐसा मुल्क मेरे पनपने के लिए उपजाऊ होता है
मुझे बस झूठ के सहारे लोगों को बाँटना और तोड़ना है।
फिर क्या ………..बस मेरा ही एकछत्र राज होगा
नया एक सविंधान और नया एक राष्ट्र होगा
सर झुकाये जो चलेंगे लीक पर वो खुशहाल रहेंगे
और जो पूछेंगे सवाल वो हमारी जेल भरेंगे।
पास में एक करुणा और प्रेम का बीज सब सुन रहा था
और सुनकर ये सब वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था
कितने तानाशाहों ने ठीक यही सोचा …… कितनी बार
पर इतिहास खंगालकर देखो हुई हमेशा उनकी हार
थोड़ी देर भले ही हो जाये —
प्रेम हमेशा जीतता है , मानवता हमेशा जीतती है
जब लोग एक दूसरे के लिए खड़े होते हैं
तो बड़े बड़े तानाशाहों के तख़्त पलट जाते हैं
अभी तुम देख नहीं पा रहे हो , तुम्हारे अंत की शुरुआत हो चुकी है
विश्वविद्यालयों से निकलकर बग़ावत अब सड़क तक आ चुकी है।
जैसे वो तानाशाह हारे थे तुम भी हारोगे।