“-स्वामीजी, पश्चिम के देश गौ की पूजा नही करते, फिर भी समृद्ध है?
– उनका तो भगवान दूसरा है बच्चा! उन्हें कोई दोष नही लगता।
– यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है। वह हर बात दंड देने लगता है।
– तर्क ठीक है, बच्चा, पर भावना गलत है।
– स्वामीजी, जहॉ तक मै जानता हूँ, जनता के मनमे इस समय गोरक्षा नही है, महगाई और अर्थिक शोषण है। जनता महँगाई के खिलाफ आंदोलन करती है। वह वेतन और महगाईभत्ता बढ़वाने के लिए हड़ताल करती है। जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है। और इधर आप गोरक्षा आंदोलन लेकर बेठ गए है। इसमें तुक क्या है?
– बच्चा, इसमें तुक है। देखो जनता जब आर्थिक न्याय की मांग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज में उलझा देना चाहिए, नही तो वः खतरनाक हो जाती है। जनता कहती है- हमारी माँग है महगाई बन्ध हो, मुनाफाखोरी बन्द हो, वेतन।बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते है की नही तुम्हारी बुनियादी मांग गोरक्षा है। बच्चा, आर्थिक क्राँति की तरफ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूंटे से बाँध देते है। यह आंदोलन जनता को उलझाये रखने के लिए है।”
यह किताब क्यों ?
हरिशंकर परसाई जी एक ऐसे व्यंगकार थे जिनकी कलम से लिखे व्यंग बहुत गहरी मार करते हैं । उन्होंने हमेशा सामाजिक व् राजनैतिक जीवन के दोगलेपन , चाटुकारिता और ढोंग के बारे में खुलकर लिखा। उनके रचित व्यंग मात्र हंसी ठिठोली से कहीं अधिक होते हैं जो आपको मुस्कुराने के अलावा गम्भीरता से सोचने पर मजबूर करते हैं। उनके बारे में इतना सुना था, तो सोचा इसी किताब से शुरुआत की जाये।
किताब
निठल्ले की डायरी छोटी-छोटी व्यंग रचनाओं का संग्रह है। इसमें परसाई जी बड़े ही सटीक तरीके से अपने आस-पास के सामाजिक और राजनैतिक जीवन में मिलने वाले लोगों और उनकी प्रवृति का वर्णन किया। साथ ही उन्होंने हम सब के अंदर छिपे और जाहिर ढोंग और दोगलेपन को खोलकर रखा है। उनके लिखे वाक्य व् छंद अब कोट्स के रूप में प्रयोग होते हैं , ये इस बात का प्रमाण है की उनकी लिखाई और व्यंग किसी एक काल में बंधे नहीं हैं अपितु timeless हैं। उदारहण के लिए –
“आत्मविश्वास धन का होता है, विद्या का भी और बल का भी, पर सबसे बड़ा आत्मविश्वास नासमझी का होता है ।”
“उपदेश—अगर चाहते हो कि कोई तुम्हें हमेशा याद रखे, तो उसके दिल में प्यार पैदा करने का झंझट न उठाओ । उसका कोई स्केंडल मुट्ठी में रखो । वह सपने में भी प्रेमिका के बाद तुम्हारा चेहरा देखेगा ।”
जो खास बात उनके लिखने में है वो ये की ये केवल मनोरंजन या हँसाने मात्र के लिए नहीं है अपितु ये आपको संजीदा होकर सोचने पर मजबूर करते हैं। ऐसे कम ही लेखनी के धनी होते हैं जो आपको हँसते-हंसाते जीवन में घटने वाली स्थितियों से उत्पन्न व्यंग को प्रस्तुत करते हैं। जब उन्होंने लिखा तो उस काल की राजनीती पर भी तीखी टिपण्णी करी और मजे की बात ये है कि इतने वर्षों बाद भी वो आज की राजनीती पर भी एकदम सटीक टिपण्णी मालूम पड़ती है।
लेखक परिचय
हरिशंकर परसाई
जन्म: 22 अगस्त, 1924। जन्म-स्थान: जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)।
निधन: 10 अगस्त, 1995।
प्रकाशित कृतियाँ: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास) तथा, तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांक श्रद्धा का दौर (सा.अ. पुरस्कार), तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं। जाने पहचाने लोग, (व्यंग्य निबंध-संग्रह)।
रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में। मलयालम में सर्वाधिक 4 पुस्तकें।
‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में संकलित रचनाएँ।
बेहद उम्दा व्यंग संग्रह, सबको एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। यह किताब आपके लिए भारतीय व्यंगकारों को पढ़ने के रास्ते खोल सकती है।
इस किताब को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग कर सकते हैं।