“हमारे नेता अब मंत्री हो गए थे। एक दिन हम उनके बंगले के सामने से निकले। देखा , बंगले के अहाते में बहुत अच्छी घास हवा में हिलोरे ले रही थी। देसी और विलायती बढ़िया घास ! हमारा जी ललचाने लगा। आज़ादी की घास कितनी अच्छी होती है।
हम बंगले में गुहस गए। हमने उन्हें याद दिलाया कि हम उनके नेतृत्व मे आज़ादी की लड़ाई लड़े थे। हमने नारे लगाए थे – गुलामी के घी से आज़ादी की घास अच्छी होती है।
मंत्री जी ने कहा , “ठीक है , ठीक है। तुम कैसे आये ? क्या चाहते हो ?” हमने कहा, ‘आपके अहाते में इतनी बढ़िया आज़ादी की घास लगी हैं। हम थोड़ी सी खाना चाहते हैं। “
मंत्री जी ने कहा, ” तुम्हे वह घास नहीं मिलेगी। वह मेरे पालतू गधों के खाने के लिए है। “”
यह किताब क्यों ?
हरिशंकर परसाई जी को जिसने एक बार पढ़ लिया उनको फिर कोई दूसरी वजह नहीं चाहिए उन्हें पढ़ने के लिए। मैं उन्हें पढ़ चुका था।
किताब
यह किताब उनकी चुनी हुई रचनाओं का संग्रह है जो उन्होंने 1975 से 1979 के बीच में लिखी थी। इस दौरान उनेक राजनैतिक उथल–पुथल हुई – जैसे आपातकाल, इंदिरा जी की हार, जनता पार्टी की गठबंधन की सरकार, पिछली सरकारों के कार्यों की जांच के लिए जांच कमीशन और बहुत कुछ।
यह किताब इसी दौरान के राजनैतिक और सामाजिक जीवन पर उनकी व्यंगात्मक टिपण्णी का संग्रह है। इस दौरान हुए राजनैतिक मूल्यों की गिरावट और उसके पतन, सामाजिक जीवन में गिरावट , संस्थानों का पतन – फिर वो कार्यपालिका हो या न्यायपालिका , सबके बारे में उन्होंने खुल कर लिखा। इस दौर के दोगलेपन , चरित्रहीनता और दग़ाबाज़ी को उन्होंने बखूबी इस किताब में अपनी लघु रचनाओं से दर्शाया है।
उनके तीखे और असरदार लेखन का एक उदहारण –
“कबीर-पंथियों ने मुझे ये खबर सुनाई।
कबीरदास बकरी पालते थे। पास में मंदिर था। बकरी वहां घुस जाती और बगीचे के पत्ते खा जाती। एक दिन पुजारी ने शिकायत की, ” कबीरदास, तुम्हारी बकरी मंदिर में घुस आती है। “
कबीर ने जवाब दिया, “पंडित जी , जानवर है। चली जाती होगी मंदिर में। मैं तो नहीं गया। ““
लेखक परिचय
हरिशंकर परसाई
जन्म: 22 अगस्त, 1924। जन्म-स्थान: जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)।
निधन: 10 अगस्त, 1995।
प्रकाशित कृतियाँ: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास) तथा, तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांक श्रद्धा का दौर (सा.अ. पुरस्कार), तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं। जाने पहचाने लोग, (व्यंग्य निबंध-संग्रह)।
रचनाओं के अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में। मलयालम में सर्वाधिक 4 पुस्तकें।
‘परसाई रचनावली’ शीर्षक से छह खंडों में संकलित रचनाएँ।
बेहद उम्दा व्यंग संग्रह, सबको एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।
इस किताब को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक का प्रयोग कर सकते हैं